मैं वास्तु का जनक मेरे सन्देश को अपनाकर तो देख,
तेरी भाग्य-वृद्धि न कर दूं तो कहना !
मेरे दिग्पालों एवं पंचत्त्वों को सन्तुलित करके तो देख,
जीवन में स्वास्थ्य, सुख, सम्पन्नता न भर दूं तो कहना !
मेरे ज्येष्ठ सुत पूर्व(इन्द्र) को पोषित करके तो देख,
सफलता, यश एवं उन्नति न दूं तो कहना !
मेरे प्रिय सुत ईशान(रूद्र) को शुद्ध करके तो देख,
रोग, ऋण से मुक्त कर, तेरे गृह की बरकत न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुलदीपक उत्तर(कुबेर) का आशीष तो लेकर देख,
धन के भंडार न खोल दूं तो कहना !
मेरे वत्सल वायव्य(पवन) का सुमिरन करके तो देख,
शत्रु-पराभव, द्रव्यलाभ व तेरा प्रभाव न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे अनुज पश्चिम(वरूण) का वास कराकर तो देख,
प्रतिष्ठा व मानसिक स्थिरता न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे प्रिय नटखट नैऋत्य(अनंता) का पोषण करके तो देख,
वंश रक्षा न करूं तो कहना !
मेरे जिद्दी सुत दक्षिण(यम) की पालना करके तो देख,
तेरी सुरक्षा न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुपित पुत्र आग्नेय(अग्नि) को स्थापित करके तो देख,
तेरे मस्तिष्क को सन्तुलित न कर दूं तो कहना !
मेरे वत्सलों हेतु व्यय व वास्तु-वचन दूजों को बताकर तो देख,
तुझे मूल्यवानद्य बनाकर सुख -समृद्धि न दे दूं तो कहना !
मेरे सच्चे भक्तों उमेश व प्रशान्त को बुलाकर तो देख,
तुझे सुख-शान्ति व समृत्रि के महासागर से न भर दें तो कहना !
मैं वास्तु का जनक मेरे सन्देश को अपनाकर तो देख,
तेरी भाग्य-वृद्धि न कर दूं तो कहना !
मेरे दिग्पालों एवं पंचत्त्वों को सन्तुलित करके तो देख,
जीवन में स्वास्थ्य, सुख, सम्पन्नता न भर दूं तो कहना !
मेरे ज्येष्ठ सुत पूर्व(इन्द्र) को पोषित करके तो देख,
सफलता, यश एवं उन्नति न दूं तो कहना !
मेरे प्रिय सुत ईशान(रूद्र) को शुद्ध करके तो देख,
रोग, ऋण से मुक्त कर, तेरे गृह की बरकत न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुलदीपक उत्तर(कुबेर) का आशीष तो लेकर देख,
धन के भंडार न खोल दूं तो कहना !
मेरे वत्सल वायव्य(पवन) का सुमिरन करके तो देख,
शत्रु-पराभव, द्रव्यलाभ व तेरा प्रभाव न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे अनुज पश्चिम(वरूण) का वास कराकर तो देख,
प्रतिष्ठा व मानसिक स्थिरता न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे प्रिय नटखट नैऋत्य(अनंता) का पोषण करके तो देख,
वंश रक्षा न करूं तो कहना !
मेरे जिद्दी सुत दक्षिण(यम) की पालना करके तो देख,
तेरी सुरक्षा न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुपित पुत्र आग्नेय(अग्नि) को स्थापित करके तो देख,
तेरे मस्तिष्क को सन्तुलित न कर दूं तो कहना !
मेरे वत्सलों हेतु व्यय व वास्तु-वचन दूजों को बताकर तो देख,
तुझे मूल्यवानद्य बनाकर सुख -समृद्धि न दे दूं तो कहना !
मेरे सच्चे भक्त उमेश को बुलाकर तो देख,
तुझे सुख-शान्ति व समृद्धि के महासागर से न भर दें तो कहना !
तेरी भाग्य-वृद्धि न कर दूं तो कहना !
मेरे दिग्पालों एवं पंचत्त्वों को सन्तुलित करके तो देख,
जीवन में स्वास्थ्य, सुख, सम्पन्नता न भर दूं तो कहना !
मेरे ज्येष्ठ सुत पूर्व(इन्द्र) को पोषित करके तो देख,
सफलता, यश एवं उन्नति न दूं तो कहना !
मेरे प्रिय सुत ईशान(रूद्र) को शुद्ध करके तो देख,
रोग, ऋण से मुक्त कर, तेरे गृह की बरकत न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुलदीपक उत्तर(कुबेर) का आशीष तो लेकर देख,
धन के भंडार न खोल दूं तो कहना !
मेरे वत्सल वायव्य(पवन) का सुमिरन करके तो देख,
शत्रु-पराभव, द्रव्यलाभ व तेरा प्रभाव न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे अनुज पश्चिम(वरूण) का वास कराकर तो देख,
प्रतिष्ठा व मानसिक स्थिरता न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे प्रिय नटखट नैऋत्य(अनंता) का पोषण करके तो देख,
वंश रक्षा न करूं तो कहना !
मेरे जिद्दी सुत दक्षिण(यम) की पालना करके तो देख,
तेरी सुरक्षा न बढ़ा दूं तो कहना !
मेरे कुपित पुत्र आग्नेय(अग्नि) को स्थापित करके तो देख,
तेरे मस्तिष्क को सन्तुलित न कर दूं तो कहना !
मेरे वत्सलों हेतु व्यय व वास्तु-वचन दूजों को बताकर तो देख,
तुझे मूल्यवानद्य बनाकर सुख -समृद्धि न दे दूं तो कहना !
मेरे सच्चे भक्त उमेश को बुलाकर तो देख,
तुझे सुख-शान्ति व समृद्धि के महासागर से न भर दें तो कहना !